' शबनम' एक ऐसा नाम जिसका अर्थ है- औस की बुंद. नाम सुनने मे हि कितना प्यारा लगता है

 

कई हिंदी रोमेंटिक मूवी मैं शबनम नाम का ही इस्तेमाल किया जाता है

शबनम एक ऐसा नाम जिसका अर्थ है- औस की बुंद. नाम सुनने मे हि कितना प्यारा लगता है.

इस नाम मे एक एहसास है, प्यार का, खुशी का.

लोग कितने प्यार और चाह से अपनी बेटी का नाम शबनम रखते है, पर क्या आपको पता है एक ऐसा गांव भी है जहां शबनम किसा का नाम रखना तो दुर उसे सुनना भी लोग पसंद नहीं करते....

आज़ाद भारत के इतिहास मैं पहली बार ऐसा होने जा रहा है जहां एक महिला को फांसी दी जायेगी...फांसी की तारीख अभी तय नहीं है, लेकिन जेल प्रशासन ने फांसी की तैयारी शुरु कर दी है.निर्भीया के दोषियों को फांसी देने वाले पवन जल्लाद ने भी जेल का दौरा कर लिया है...

आज से 13 साल पहले 14-15 अप्रैल 2008 की रात को, अमरोहा के बावनखेड़ी गांव में एक ऐसा हादसा हुआ  जो आज भी इस गांव के लोगों की झकझोकर रख देती है....

अमरोहा के ऱहने वाली शबनम ने 14-15 अप्रैल 2008 को अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने ही परिवार के 7 लोगों की कुलहाड़ी से हत्या कर मौत की नींद सुला दिया था...मामला प्रेंम प्रसंग का था, शबनम को सलीम से प्रेम था, पर ये बात शबनम के घरवालो को नागवार गुज़री क्योंकी शबनम सैफी और सलीम पठान बिरादरी का था. दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन दोनों अलग-अलग समुदाय से होने की वजह से कर नहीं पा रहै थै. दोनों ने मिलकर सोचा क्यों ना ये रोड़ा ही हटा दिया जाये...दोनों ने मिलकर के 7 लोगों को मौत के घाट उतार दिया एक हि रात मैं.

शबनम ने शुरुआत मैं ये दावा किया की था की यूपी के अमरोहा जिले मैं उसके घर अज्ञात लोगों ने हमला कर दिया है......लेकिन जब पुलिस को शबनम पर शक हुआ क्योंकि वह अकेली बची हुई इंसान थी उस हादसे में. इसके बाद जब पुलिस ने कॉल डिटेल्स निकाले तब पुरी वारदात़ का खुलासा हुआ...

एक ही नंबर पर 57 बार से ज्यादा बार बात करी गई थी वारदात के दिन..इसके बाद जब पुलिस ने कड़ाई से पुछताछ करी तो सारा सच सामने आ गया.
इस केस की सुनवाई अमरोहा कोर्ट मैं 2 साल 3 महिने तक चली, जिसके बाद जिला जज एसएए हुसैनी ने 15 जुलाई 2010 को सलीम और शबनक को तब तक फांसी के फंदे पर लटकाने की सज़ा सुनाई जब तक उनकी जान ना निकल जाये...

शबनम ने निचली अदालत के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी लेकिन शीर्ष अदालत ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा. इसके बाद राष्ट्रपति को भी दया याचिका भेजी गई लेकिन राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका को खारीज कर दिया गया ..

फिलहास सलीम आगरा की जेल मैं बंद है और शबनम बरैली की जेल मैं.

मथुरा जेल मैं 150 साल पहले महिला फांसी घर बनाया गया था. लेकिन आजादी के बाद आज तक यहां पर कभी भी किसी महिला को फांसी नहीं दी गया. आज़ाद भारत के इतिहास में यह पहली महिला फांसी होगी. जानकारी के अनुसार बिहार से फांसी में उपयोग होने वाली रस्सी भी मंगा ली गई है और फांसी की तैयारी भी शुरु कर दि गई, जैसे ही डेथ वारंट जारी कर दिया जायेगा शबनम और सलीम को फांसी दे दी जायेगी. सलीम को फांसी कहां दि जायेगी अभी इसका पता नहीं लग पाया है.

-हेमांग बरुआ

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