‘कोरोना’ अब बस भी करो ना
दिसंबर का वो समय मुझे आज भी याद है, जब पुरा भारत क्रिसमस और नये साल को
सेलिब्रेट करने में डूबा हुआ था। सभी लोग इस साल को एक नये भारत के रुप में देख
रहे थे। तभी एक खबर ने अचानक जोर पकड़ना शुरु किया कि चीन में एक महामारी ने अपने
पैर पसार लिए हैं। खैर हमें क्या हम तो जश्न मैं डूबे हुए थे। इस बात से बिलकुल
परे कि ये खबर आने वाले समय में वैश्विक महामारी का रुप लेने वाली है।
सब सही चल रहा था। इसी बीच एक और खबर आई, जिसने पुरे विश्व
को झकझोर कर रख दिया और वो थी कि चीन में महामारी के चलते लॉकडाउन लगा दिया गया है।
न्यूज चैनलों पर ब्रेकिंग आने लगी। न्यूज पेपरों में महामारी से रिलेटेड लम्बे
आर्टिकल लिखे जाने लगे। बड़े-बड़े पत्रकार इसको अपने-अपने नजरिये से देश के सामने
रखने लगे। मानों देश में डिबेट करने के लिए मुद्दों का अचानक अकाल पड़ गया हो। सरकारी
तंत्र से लेकर सुरक्षा तंत्र तक सब धीरे-धीरे एक्टिव होने लगे, मतलब ‘धीरे-धीरे’। तब तक कोरोना
ने भारत में भी एंट्री ले ली।
पहला केस 30 जनवरी 2020 को सामने आया था, जिसके बावजूद भी,
न सत्ता के नशें में चुर सताधीशों को कोई फर्क पड़ रहा था और ना ही सरकारी तंत्र
को। भारत में लोग इसके बाद भी मजे से जिंदगी जी रहे थे। कुछ को तो ये लॉकडाउन क्या
बला है ये तक पता नही था।
फिर धीरे-धीरे
स्थिति साफ होने लगी। सबको पता चलने लगा कि महामारी क्या होती है? और चीन का क्या हाल हो रखा है। धीरे-धीरे
लोगों में डर पैदा होना भी शुरू हो गया। भलें ही भारत में स्थिति अभी नियंत्रण में
थी, लेकिन जो तस्वीरें चीन और इटली जैसे देशों से आ रही थी। उसने लोगों की हिला कर
रख दिया था।
भारत में जब हालात बिगड़ने लगे तब सरकार ने पहले जनता कर्फ्यू
की घोषणा की और फिर उसके अगले हीं दिन पुरे देश में 21 दिनों के लिए लॉकडाउन लगा दिया।
इस फैसले नें पूरे देश के नागरिकों को स्तब्ध करके रख दिया। ऐसा लग रहा था कि
मानों जैसे दूनिया हीं ठहर गई हो। जो बाजार लोगों के होने से गुलजार हुआ करते थे, लॉकडाउन
के बाद वो सुनसान हो चुके थे। जब लॉकडाउन लगा था तब सब इसे 21वीं सदी के 21 दिन के
रुप में देख रहे थे। जिन्होंने कभी
सपने में भी नहीं सोचा था कि भविष्य में कभी ऐसा भी दिन देखना पड़ सकता है। जब खुद
को आजाद कहने वाले हम जैसे जीव को एक छोटे से वायरस के चलते अपने आप को एक घर रुपी
पिंजरे में कैद करना पड़ जाएगा। वो कहावत हैं न ‘सपने बनते हीं
टुटने के लिए हैं।’ शायद वही हुआ।
इन सब के बीच लोगों ने घर पर रह कर बहुत कुछ सीखा। दिन भर
मोबाइल में मशगुल रहने वाले लोग अब अपने आप से
प्यार करना सीखने लगे। उन्होनें अपने घर वालों को समय देना सीखा। वो दोस्त या
रिश्तेदार जिनसे बात किए अरसे हो गए थे उनसे दूबारा बात करना शुरु हो पाया। किसी
के मन में कोई मनमुटाव भी था तो वो भी दुर हो गया। जिन हाथों को कीबोर्ड के सिवा
कुछ चलाना नहीं आता था, उन ने रोटी बनाना सिखा, फिर उनको पता चला कि वो खाना पकाने
में उतने भी बुरे नहीं हैं जितना कि वो सोचा करते थे। हम सब ने लॉकडाउन में अपने
अंदर छिपे हुए टैलेंट को बाहर आने का मौका दिया। एक वक्त 21 दिन को काटना हमारे
लिए एक जंग लड़ने जैसा था, लेकिन अब इसमें खिलाड़ी हो गए हैं।
देश में अब लॉकडाउन का चौथा चरण शुरु हो चुका है, और ये
लॉकडाउन कब तक ऐसे ही बढ़ता रहेगा। इस बात के बारे में किसी को अंदाजा नही हैं।
WHO नें तो यहां तक कह दिया है कि शायद कोरोना
हमारी जिंदगी से कभी न जाए। हमें इसके साथ जीना सीखना होगा।
भलें हीं कोरोना के साथ हम जीना सीख लें, लेकिन जब इसके बाद
लॉकडाउन खुलेगा। तब दूनिया शायद हीं पहले जैसे हो पाए। पहले की तुलना में लोग सोशल
डिस्टेंसिंग, मास्क का इस्तेमाल और सेनिटाइजेशन को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना
देंगे।
चलिए इसे एक-एक कर समझते हैं-
1. रेस्तरां- शायद अब आपका
पसंदीदा रेस्तरां वैसा नहीं दिखे जैसा आज के समय में है। तब रेस्तरां मालिकों को
सोशल डिस्टेंसिंग को बखुबी ध्यान रखना पड़ेगा। भलें ही इसके लिए उन्हें टेबलों की
संख्या घटानी पड़े।
2. हो सकता है कि अब
हमे हार्ड बाइंडिंग वाले मेन्यू की जगह पेपर के बने डिस्पोजेबल मेन्यू या फिर
ऑनलाइन रेस्तरां की साइट से आर्डर करने को कहा जाए।
3. अगर आप किसी फेमस
रेस्तरां में डिनर करना चाहतें हैं तो आने वाले समय में लोगों को भीड़ से दूर रखने
के लिए ऑनलाइन रिजर्वेशन का सहारा लेना पड़े।
4. रेस्तरां में
आपके अलावा सब ने मास्क लगा रखा होगा 5. किसी भी बड़े
समारोह को ध्यान से प्लान करें क्योंकी प्रत्येक टेबल पर अनुमत लोगों की संख्या
कर्मचारियों और अन्य मेहमानों की सुरक्षा के लिए सीमित होगी
2. स्कूल
1. स्कूल शायद अब अपने ऑडिटोरियम को बड़े-बड़े
क्लास रूम में
कन्वर्ट कर दें।
2. ‘ऑनलाइन लर्निंग’ या फिर ‘लर्न फ्रॉम होम’ को बढ़ावा दिया जाए।
3. टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल पढ़ानें में किया जाए।
3. ट्रैवल
1. जैसा की आपको एयरपोर्ट
पर 90 मिनट पहले आना अनिवार्य है वैसे ही अब ट्रेन पकड़ने के लिए भी आपको समय से
पहले आना पड़े। ताकि आपकी स्क्रीनिंग की जा सके। जो लोग डिपार्चर टाइम से 2 मिनट
पहले या दौड़ते हुए ट्रैन पकड़ते थे। उनके लिए शायद ये एक सपना बन कर रह जाए।
2. अभी हम जब भी रेलवे स्टेशन या एयरपोर्ट जाते हैं तो हमें
सिक्योरिटी स्कैनर से गुज़रना पड़ता है वैसा ही अब हमें फुल बॉडी सैनिटाईजेशन
चैम्बर से गुज़रना पड़े।
3. ट्रैवल करते समय अब हमें शायद खाने-पीने की और पिल्लो और
ब्लैंकेट की सुविधा ना मिले।
4. अब ट्रेन, फ्लाइट और बस कम मात्रा में चले और उसमें
लोगों को बैठने की व्यवस्था दुर-दुर की जाए जिससे की किराया बढ़ सकता है।
इसी के साथ कुछ और
बदलाव भी हो सकते हैं-
- अब आप शायद उस भीड़ का हिस्सा नहीं हो पाएंगे जो स्टेडियम
में बैठ कर अपने मनपसंद खेल या खिलाड़ी को देखना पसंद करते थे।
- अब आपको हर जगह “ DO NOT
TOUCH” के बोर्ड देखने को मिलेंगे।
- घर पर ही आपको रोज स्क्रीनिंग की आदत डालनी होगी।
- ट्रेन और फ्लाइट से ज्यादा अब लोग अपनी गाड़ियों से
ट्रैवल करना पसंद करेंगे, उसमें संक्रमण का खतरा कम होगा।
- रेग्युलर हेल्थ चेकअप को अब लोग महत्व देंगे।
- साफ-सफाई और सैनिटाईजेशन पर लोग सबसे अधिक ध्यान देंगे।
- ‘आरोग्य सेतु’ ऐप को लोग ज्यादा इस्तेमाल करेंगे, जिससे अगर
आपके पास कोई संक्रमित आता हैं तो आपको तुरंत सुचित किया जा सके।
- सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क, ग्लव्स, सैनिटाईजर, हाथ धोना और
नमस्ते करना अब न्यू इंडिया का हिस्सा बन जाए।
हमारी नदियां फिर से साफ हो जाए, जिस गंगा पर अब तक पिछले
35 सालो में 20000 करोड़ से ज्यादा खर्च करके भी उतना साफ नहीं कर सके थे जितना इस
लॉकडाउन ने कर दिया। नदियां इतनी हद तक साफ हो गई कि उसमें डॉलफिन तक दिखाई देने
लगी है। मोदी सरकार ने 2014 से अब तक ‘नमामी गंगे प्रोजेक्ट’ के तहत् 4800 करोड़ रुपए खर्च कर चुकी हैं।
दिल्ली की हवा जो कि सांस लेने के लिए सबसे हानिकारक हुआ
करती थी, जिसका AQI सबसे ज्यादा था।
उसी दिल्ली के AQI में तकरीबन 71% तक की कमी दर्ज
की गई हैं।
प्रदुषण इस हद तक कम हो गया की पंजाब के जालंधर से तकरीबन
200 किलोमीटर दुर स्थित हिमाचल की धौलधार पर्वत श्रृंखला नजर आने लगी है।
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